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वैद्युत संकर्षण तथा विद्युत धारा प्रणाली क्या है

संकर्षण प्रणाली के मुख्य तीन भाग होते हैं –
(a) भाप इंजन संकर्षण

(b) डीजल विद्युत संकर्षण

(c) विद्युत संकर्षण

(a) भाप इंजन संकर्षण (Steam Engine Traction) :-

इस विधि में भाप इंजन द्वारा रेलगाड़ी को चलाया जाता है। भारत में अब इस प्रणाली का प्रयोग लगभग खत्म हो गया है क्योंकि विद्युत संकर्षण में अब पर्याप्त उन्नति हो गयी है।

यह एक स्वावलम्बी प्रणाली है, जिसे किसी भी ऐसे मार्ग पर चलाया जा सकता है जहाँ इसके लिये उपयुक्त पटरियाँ प्राप्त हो।

इसकी दक्षता 6 से 8 प्रतिशत तक की होती हैं। संघनन प्रणाली लगाकर दक्षता को लगभग 15 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।

(b) डीजल विद्युत संकर्षण (Diesel Electric Traction) :-

यह प्रणाली प्रायः छोटे मार्गों पर ही प्रयोग की जाती है। इस प्रणाली में डीजल इंजन के साथ दिष्ट धारा जेनरेटर युग्मित रहता है तथा डीजल इंजन के r.p.m. स्थिर रखे जाते हैं।

इस प्रकार उत्पन्न ऊर्जा, इंजन तथा ट्रेन को चलाने में प्रयोग होती है। भाप इंजन संकर्षण की तरह इस प्रणाली में भी मार्ग विद्युतीकरण की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह स्वयं में पूर्ण इकाई होती है।

डीजल विद्युत संकर्षण प्रणाली की दक्षता 25 % लगभग है।

(c) विद्युत संकर्षण (Electric Traction) :-

इस प्रकार के चालन में रेलगाड़ी को चलाने के लिये विद्युत इंजनों का प्रयोग किया जाता है। विद्युत इंजनों में दिष्टधारा श्रेणी मोटरें या एक फेजी प्रत्यावर्ती धारा मोटरें या त्रिफेजी प्रेरण मोटरें प्रयोग की जाती है।

विद्युत ऊर्जा Sliding contact द्वारा शिरोपरि वितरण लाइन से सीधे मोटर को दी जाती है तथा मोटर में उत्पन्न बलघूर्ण द्वारा गाड़ी को चलाया जाता है।

यह प्रणाली भूमिगत रेलवे के लिये उपयुक्त है ।

मार्ग विद्युतीकरण के लिये निम्न पाँच प्रणालियाँ प्रयोग की जाती हैं –

(i) दिष्ट धारा प्रणाली
(ii) एक फेजी निम्न आवृत्ति प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली
(iii) एक फेजी उच्च आवृत्ति प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली
(iv) त्रिफेजी प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली
(v) सम्मिश्र प्रणाली।

(i) दिष्ट धारा प्रणाली :-

इस प्रणाली में गाड़ी को चलाने के लिये दिष्टधारा श्रेणी मोटरों द्वारा आवश्यक बलपूर्ण प्राप्त किया जाता है। परन्तु कभी – कभी ट्रामवे और ट्राली में कम्पाउण्ड मोटरों का भी प्रयोग किया जाता है।

ट्रामवे व ट्राली प्रायः 600V तक कार्य करती है। रेलगाड़ी संकर्षण में वोल्टता का मान 15000 से 3000V तक होता है। सिस्टम को ऊर्जा देने के लिये अनेक विद्युत उपकेन्द्रों का प्रयोग किया जाता है।

उपनगरीय रेलवे में वोल्टता का मान 1500 से 3000V तक होता है तथा उपकेन्द्रों को 33KV से 100KV तक प्रत्यावर्ती धारा वोल्टेज फीडर द्वारा दी जाती है।

उपकेन्द्रों में वोल्टेज को आवश्यकतानुसार कम करने तथा प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलने के लिये क्रमशः ट्रांसफॉर्मर तथा घूर्णक परिवर्तक या दिष्टकारी लगाये जाते हैं।

(ii) एक फेजी निम्न आवृत्ति धारा प्रणाली :-

एक फेजी श्रेणी मोटर में निम्न आवृत्ति की सप्लाई प्रयोग करने से दिक परिवर्तन उत्तम प्राप्त होता है। साथ ही साथ शक्ति गुणक में सुधार तथा दक्षता में वृद्धि होती है।

छोटे पाट की शिरोपरि सप्लाई में आर्थिक दृष्टि से एक चालक का प्रयोग किया जाता है तथा वोल्टेज 15KV से 25KV तक होती है।

आवृत्ति का मान 16.2/5 से 25 c/s तक रखा जाता है ।

पटरी धारा की वापसी मार्ग का कार्य करती है। उच्च वोल्टेज होने से धारा का मान कम हो जाता है।

आवृत्ति व कम धारा के कारण प्रतिबाधा पात का मान कम हो जाता है जिसके कारण उपकेन्द्रों के बीच की दूरी 50 से 80 किमी तक बढ़ायी जा सकती है।

यदि संकर्षण प्रणाली को विशेष रूप से निर्मित केन्द्रों द्वारा सप्लाई दी जाती हो तो उपकेन्द्र में केवल ट्रांसफॉर्मर की आवश्यकता होती है परन्तु यदि सप्लाई औद्योगिक आवृत्ति जाल द्वारा दी जाती है, तो ट्रांसफार्मर के साथ आवृत्ति बदलने के लिये आवृत्ति परिवर्तक की भी आवश्यकता होती है।

आवृत्ति परिवर्तक में तीन – फेज तुल्यकाली मोटर तथा प्रत्यावर्तक ( alternator ) संयोजित होते हैं। इसमें तीन – फेज सप्लाई दी जाती है तथा इससे एक – फेज की सप्लाई प्राप्त होती है।

(iii) एक-फेजी उच्च आवृत्ति प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली :-

खानों आदि में जहाँ विशेष प्रकार की गैसें उपस्थित होती है, यह आवश्यक होता है कि शिरोपरि सम्पर्क से धारा संग्रह करते समय चिंगारी उत्पन्न न हो, इसलिये शक्ति दो शिरोपरि केबिलों से प्राप्त करते हैं।

इस पद्धति में आवृत्ति का मान 2500 से 3000 Hz तक होता है ।

केबिल से लगभग 4 सेमी. पर रखे ऊर्जा रिसीवर में प्रत्यावर्ती धारा प्रेरित होती है जिसे दिष्टकारी द्वारा दिष्ट धारा में बदल दिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त डी. सी. को संकर्षण मोटर में प्रयुक्त किया जाता है।

(iv) त्रि-फेजी प्रत्यावर्ती धारा प्रणाली :-

इस प्रणाली में प्रेरण मोटर को 3.3KV तथा 16.23 आवृत्ति पर दो शिरोपरि चालकों तथा पटरियों द्वारा तीन फेज सप्लाई दी जाती है।

(v) कैण्डो प्रणाली :-

इस प्रणाली में एक-फेज परिवर्तक द्वारा एक फेज सप्लाई को त्रि-फेज सप्लाई में परिवर्तित किया जाता है जिसके द्वारा त्रि-फेज प्रेरण मोटर प्रचालित किये जा सकते हैं।

परन्तु संकर्षण के लिये प्रेरण मोटर बहुत अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होती क्योंकि इनका प्रारम्भिक बलघूर्ण कम तथा धारा अधिक होती है।

प्रेरण मोटर में सूक्ष्म गति नियन्त्रण भी सम्भव नहीं हैं ।

आजकल SCR की सहायता से 1/2 से 9 Hz तक निम्न आवृत्ति प्राप्त की जा सकती है। निम्न आवृत्ति पर प्रेरण मोटरों का प्रारम्भिक बलघूर्ण बढ़ जाता है तथा धारा कम हो जाती है।

गति नियन्त्रण भी सप्लाई परिवर्तन द्वारा सुगमता से किया जा सकता है।

(vi) एक फेज से दिष्टकारी प्रणाली :-

भारत में इस प्रणाली में 50 Hz आवृत्ति पर 15KV से 25KV की सप्लाई प्रयोग की जाती है।

इंजन में रखे step-down ट्रांसफॉर्मर द्वारा वोल्टेज को step down दिष्ट धारा में परिवर्तित किया जाता है। इस दिष्ट धारा सप्लाई से श्रेणी मोटर को प्रचालित कर संकर्षण में प्रयुक्त किया जाता है।

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